बुधवार, 31 अगस्त 2011

अब जब 25 पैसे चलन में ही नहीं रहे तो शुल्क 50 पैसे के गुणक में होना चाहिये ना।

इस पर आपकी चर्चा आमंत्रित है
भारतीय सिनेजगत में चवन्नी उछाल कर दिल माँगने का सिलसिला बहुत पुराना रहा है परन्तु भारत सरकार ने बीते एक माह से चवन्नी का चलन ही बंद कर दिया है। ऐसी हालत में अब भारतीय टकसाल में ढलने वाली सबसे छोटी मुद्रा अठन्नी होगी। अब चवन्नी उछाल कर दिल माँगने वाला सिने जगत सीधे सीधे चेक माँगता हुआ नजर आ रहा है (याद करें अदनान सामी) परन्तु असली लाचारी उन ऐतिहासिक दस्तावेजों की है जो सिर्फ चवन्नी के बारे में ही लिखे गये थे। इस संबंध में साहित्यिक और सिने जगत ने तो अपने अपने तरीके से इसका हल निकाल लिया है परन्तु विधिक प्राविधानो पर नजर दौडाने पर हाल ही में एक रोचक तथ्य संज्ञानित हुआ है।
किसी कार्य से भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899(यथासंशोधित) के प्राविधानों को पढने की आवश्यकता उत्पन्न हुयी। इस केन्द्रीय अधिनियम की एक धारा ने मेरा ध्यान आकर्षित किया जो इस प्रकार थीः-

घारा 78ः- अधिनियम का अनुवाद तथा सस्ते दाम पर बिक्री- प्रत्येक राज्य सरकार अपने द्वारा शासित क्षेत्रार्न्तगत अधिकतम पच्चीस नये पैसे (शब्द ‘पच्चीस नये पैसे’ 1958 में प्रतिस्थापित) प्रति की दर पर प्रभुख भाषा में इस अधिनियम के अनुवाद की बिक्री के लिये प्राविधान बनायेगी।

(मूल धारा अंग्रेजी मे है यहाँ उसका अनुवाद प्रस्तुत है)

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

ऊपर राज्यपाल, नीचे लेखपाल बाकी सब देखभाल,

ग्रामीण जीवन में सबसे निचले स्तर के इस राजस्व कर्मी लेखपाल की महत्ता का अंदाजा आप उपर लिखी कहावत से आसानी से लगा सकते है। अपने प्रदेश में राजस्व विभाग में कार्यरत सबसे निचले स्तर के राजस्व कर्मी लेखपाल के संबंध में उपर लिखी कहावत सामान्य रूप से कही और सुनी जाती रही है। सन् 1973 से पूर्व उत्तर प्रदेश में इस राजस्व कर्मी का नाम ‘पटवारी’ हुआ करता था। इस पदनाम की छबि आम जनता में अच्छी न होने के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह जी के द्वारा ऐतिहासिक निर्णय लेते हुये इस पदनाम के स्थान पर इसे ‘लेखपाल’ का पदनाम दिया गया था। देश के अनेक राज्यों में आज भी राजस्व विभाग की सबसे निचली पायदान पर विराजमान इस महत्वपूर्ण कर्मी को पटवारी ही कहा जाता है। राजस्थान राज्य में ऐसे राज्यों की श्रेणी में है जिसमें आज भी सबसे निचले स्तर के राजस्व कर्मी को इसी नाम ‘पटवारी’ से संबोधित किया जाता है। पटवारी पदनाम के संबंध में एक रोचक चर्चा तीसरा खंभा में की गयी है जिसे जानने के लिये आगामी लिंक को क्लिक करें।
तीसरा खंबा: राजस्थान में कृषिभूमि का नामान्तरण

सोमवार, 15 अगस्त 2011

1मार्च 1931 का समाचार पत्र जिसमें चन्द्रशेखर आजाद की मृत्यु के समाचार के साथ तहसीलदार की हत्या का भी समाचार छपा था


स्वतंत्रता दिवस को छुट्टी का दिवस के स्थान पर गंभीर चर्चा दिवस क्यों नहीं मानते हम लोग?

आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस के दो दिन पूर्व यानी 21 जुलाई की बात थी मै एक आवश्यक राजकीय कार्य के चलते उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले शहर इलाहाबाद गया हुआ था। थोडा समय बचा तो इलाहाबाद राजकीय पुस्तकालय पहुँच गया।
पुस्तकालय में पुराने समाचार पत्रों में आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद के संबंध में छपी खबरों को ढूँढकर उसके चित्रों के साथ एक आलेख बनाने की योजना थी। (इससे संबंधित पोस्ट 23 जुलाई 2011 को कोलाहल से दूर... ब्लाग पर जारी हुयी थी जिसे आप सबका भरपूर सम्मान और समर्थन मिला था)
आजाद जी की खबरों वाले समाचार पत्र का छायाचित्र लेने के दौरान ही उसी समाचार पत्र में छपी एक खास खबर पर निगाह अटक गयी। जिस दिन चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद के एन्फेड पार्क में घेरकर पुलिस द्वारा आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया गया था उसी दिन समीपवर्ती जनपद फतेहपुर मे सरकारी धनराशि की वसूली हेतु पहुँचे एक सरकारी अधिकारी (तहसीलदार) को लाठी डंडों से पीट पीट कर मार डाला गया था। आजाद जी की मृत्यु के साथ यह समाचार भी समाचार पत्र के मुख्यपृष्ठ पर ही छापा गया था।

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

सुधार विलेख (Correction Deed) निष्पादित करने से मना करने पर विक्रेता के विरुद्ध विशिष्ठ अनुपालन का वाद


उत्तर प्रदेश में भू राजस्व की वसूली हेतु भूअभिलेखों को अद्यतन रखने हेतु जिलाधिकारी को उत्तरदायी बनाया गया है। इस हेतु भू राजस्व अधिनियम 1901 के प्रविधान प्रदेश में लागू है जिसकी धारा 34 भूअधिलेखों में नामान्तरण की ब्यवस्था देती है । इस धारा के तहत किसी भी प्रकार से भूमि पर कब्जे के परिवर्तन के लिये तहसीलदार द्वारा नामान्तरण वादों की सुनवयी के आधार पर नामान्तरण आदेश पारित किये जाते हैं । अनेक अवसरों पर बैनामें में त्रुटि होने से नामान्तरण आदेश जारी होने में अडचन आती है , ऐसी स्थिति में क्रेता सुधार विलेख निष्पादित कराता है जिसके संबंध में एक रोचक चर्चा तीसरा खंभा पर की गयी है । आप सभी सुधी पाठकों के लिये उसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ कृपया विस्तृत विवरण पढने के लिये लिंक पर क्लिक करें।
तीसरा खंबा: सुधार विलेख (Correction Deed) निष्पादित करने से मना करने पर विक्रेता के विरुद्ध विशिष्ठ अनुपालन का वाद

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

‘‘पसंद नापसंदगी को तलाक के मुकदमों का आधार नहीं बनाया जा सकता’’

अचानक यहाँ लखनऊ में एक ऐसी खबर आयी है जो भारतीय नारी के लिये अच्छी है सो आज की पोस्ट में उसे दे रहा हूँ । हाँलांकि इसमें पुरूषों के प्रति कुछ ज्यादती नजर आती है लेकिन यह चर्चा आप सब सुधी पाठक जनों पर छोडते हुये खबर का आनंद लें।


जी हाँ ! लखनऊ के उच्च न्यायालय में एक डाक्टर दंपत्ति के तलाक संबंधी मुकदमे में न्यायालय ने कुछ ऐसी ही व्यवस्था दी है। इस निर्णय ने जहाँ एक ओर विवाहित हिन्दू महिला के अधिकारों को मजबूती प्राप्त होने के साथ साथ विवाह विच्छेद के आधारों को नये सिरे से परिभाषित करने जैसा कार्य किया है वहीं दूसरी ओर पत्नियों के अत्याचार से पीड़ित पतियों की दशा ‘‘जबरिया मारे रोने न दे ’’जैसी भी कर दी है।

बुधवार, 3 अगस्त 2011

पति की मृत्यु पर उस की पैतृक संपत्ति में पत्नी को उत्तराधिकार प्राप्त होगा


उत्तर प्रदेश में लागू भूमि संबंधी जमींदारी विनाश अधिनियम 1950 में पति की मृत्यु पर मृतक की कृषि भूमि हेतु उसकी पत्नी को पुत्रों के साथ समान रूप से उत्तराधिकारिणी माना गया है । यहां पति की मृत्यु पर उसकी पत्नी को मिलने वाले संपत्ति के अधिकार के संबंध में एक रोचक चर्चा तीसरा खंभा पर की गयी है । आप सभी सुधी पाठकों के लिये उसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ कृपया विस्तृत विवरण पढने के लिये लिंक पर क्लिक करें।
तीसरा खंबा: पति की मृत्यु पर उस की पैतृक संपत्ति में पत्नी को उत्तराधिकार प्राप्त होगा

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