27 अप्रैल, 1948 को पंडित नेहरू को लिखे अपने पत्र में सरदार पटेल ने कहा था,
‘लोकतांत्रिक शासन के तहत एक समर्थ, अनुशासित और संतुष्ट अखिल भारतीय सेवा की जरूरत है। और यह सेवा पार्टी से ऊपर होनी चाहिए।’
आज कितने नेता यह कहेंगे? सभी दलों ने तो तबादले के अधिकार का जमकर दुरुपयोग किया है।
ट्रांसफर सेवा से रिटायरमेंट के रिहर्सल ही तो हैं।
जल्दी-जल्दी होने वाले तबादले एक अधिकारी को जहां पेशेवर तौर पर अलग-थलग पड़ने का एहसास कराते हैं, तो वहीं निजी रूप से उसे हताश भी कर सकते हैं। संबंधित अधिकारी इसमें जो भुगतता है, वह तो एक बिंदु है ही, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि ताकत के हथियार के रूप में त्वरित तबादलों की इस परिपाटी से खुद प्रशासनिक ताना-बाना कमजोर होता है। राज्य को एक आधारभूत प्रशासनिक मजबूती देने की बजाय इन अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे सूबे की बदलती सियासत के मुताबिक खुद को ढाल लें और उसकी अपेक्षाओं पर खरा उतरें।
तबादलों के पीछे तर्क होने चाहिए / गोपालकृष्ण गांधी पढने के लिये इस लिंक पर जाये https://www.facebook.com/ notes/विशाल-तिवारी/ तबादलों-के-पीछे-तर्क-होने-चाहिए -गोपालकृष्ण-गांधी/ 10151918148650965
‘लोकतांत्रिक शासन के तहत एक समर्थ, अनुशासित और संतुष्ट अखिल भारतीय सेवा की जरूरत है। और यह सेवा पार्टी से ऊपर होनी चाहिए।’
आज कितने नेता यह कहेंगे? सभी दलों ने तो तबादले के अधिकार का जमकर दुरुपयोग किया है।
ट्रांसफर सेवा से रिटायरमेंट के रिहर्सल ही तो हैं।
जल्दी-जल्दी होने वाले तबादले एक अधिकारी को जहां पेशेवर तौर पर अलग-थलग पड़ने का एहसास कराते हैं, तो वहीं निजी रूप से उसे हताश भी कर सकते हैं। संबंधित अधिकारी इसमें जो भुगतता है, वह तो एक बिंदु है ही, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि ताकत के हथियार के रूप में त्वरित तबादलों की इस परिपाटी से खुद प्रशासनिक ताना-बाना कमजोर होता है। राज्य को एक आधारभूत प्रशासनिक मजबूती देने की बजाय इन अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे सूबे की बदलती सियासत के मुताबिक खुद को ढाल लें और उसकी अपेक्षाओं पर खरा उतरें।
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