गुरुवार, 8 सितंबर 2011

क्या यह प्रोन्नति के पदों पर आरक्षण प्राविधान लागू करने हेतु उच्चतम न्यायालय की सैद्धांतिक स्वीकृति है?


बीते ब्रहस्पति वार को भारतीय उच्चतम न्यायालय ने ग्रेड अपग्रेडेशन में आरक्षण प्राविधानों को लागू किये जाने को असंवैधानिक मानते हुये एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। इस फैसले में प्रोन्नति में आरक्षण विषय पर अपना मंतब्य स्पस्ट करते हुये कहा गया है कि ‘‘......पद अपग्रेडेशन नियुक्ति अथवा पदोन्नति से जुडा हुआ विषय नहीं है.....इसलिये इसमें आरक्षण लागू नहीं हो सकता.....’’





माननीय उच्चतम न्यायालय के इस मंतब्य को प्रोन्नति के पदों में में आरक्षण को माननीय उच्चतम न्यायालय की सैद्धांतिक स्वीकृति कहा जा सकता है अथवा नहीं यह कानूनविदों के लिये विचार का विषय हो सकता है। जस्टिस मारकण्डेय काटजू और जस्टिस आर वी रवीन्द्रन की पीठ ने मद्रास हाई कोर्ट और कैट की चेन्नई शाखा द्वारा पारित एक निर्णय के विरूद्ध अपना यह महत्वपूर्ण आदेश दिया है।


भारत संचार निगम लिमिटेड ने अपने कर्मचारियों को ग्रेड वेतन का लाभ देते हुये उनका वेतन ग्रेड 3 से ग्रेड 4 में बढाया था जिसके बाद कुछ कर्मचारियों द्वारा कैट चेन्नई शाखा में रिट याचिका योजित करते हुये ग्रेड के उच्चीकरण लाभ देने में आरक्षण अनुमन्य करते हुये उन्हे भी ग्रेड 4 में उच्चीकृत करने की प्रार्थना की । कैट ने याची गणों के पक्ष में निर्णय दिया जिसे मद्रास उच्च न्यायालय ने भी सही माना था। जिसके आधार पर आरक्षित श्रेणी के कुछ कर्मचारियों को ग्रेड 4 का लाभ अनुमन्य करा दिया गया था।


कालान्तर में भारत संचार निगम लिमिटेड के संज्ञान में यह आया कि पूर्व में कैट अहमदाबाद और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ग्रेड उच्चीकरण में आरक्षण नियम लागू न होने संबंधी निर्णय दिये हैं । इस आधार पर कर्मचारियों को अनुमन्य उच्चीकृत ग्रेड को वापिस ले लिया गया और कर्मचारियों का वेतन पुनः गेड 3 नियत किया गया। कर्मचारियों द्वारा पुनः माननीय न्यायालय और कैट की शरण ली गयी जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा कर्मचारियों के पक्ष में फैसला दिया गया। भारत संचार निगम लिमिटेड ने कैट चेन्नई शाखा और माननीय उच्च न्यायालय की मद्रास शाखा के निर्णयों का समादर न करते हुये इनके विरूद्ध माननीय उच्चतम न्यायालय में विशेष अपील दायर की जिसमें बीते ब्रहस्पति वार को माननीय उच्चतम न्यायालय ने कैट और मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध फैसला दिया है।
माननीय उच्चतम न्यायालय की खंड पीठ ने अपने आदेश में यह अवधारित किया है किः-



‘......पद अपग्रेडेशन नियुक्ति अथवा पदोन्नति से जुडा हुआ विषय नहीं है.....इसलिये इसमें आरक्षण लागू नहीं हो सकता। पद अपग्रेडेशन में कर्मचारी को सिर्फ आर्थिक लाभ होता है, क्योंकि उसक पे स्केल बढ जाता है । ऐसे में सिर्फ पद अपग्रेडेशन में आरक्षण के नियम लागू नहीं किये जा सकते ...’ ।



उल्लेखनीय है कि माननीय उच्चतम न्यायालय के सम्मुख उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय से पारित प्रोन्नति में आरक्षण विषयक एक महत्वपूर्ण मुद्दा विशेष अपील के माध्यम से विचारण हेतु लंबित है। जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा अपने कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण अनुमन्य कराते हुये उनकी वरिष्ठता निर्धारण से संबंधित प्राविधान को माननीय उच्च न्यायालय ने उचित नहीं माना था। उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ द्वारा पारित इस निर्णय के विरूद्ध राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में एक विशेष अपील दायर कर रखी है जिसमें विचारण हेतु 11 अक्टूबर की तिथि नियत है।



ऐसे अवसर पर माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा ग्रेड अपग्रेडेशन में आरक्षण प्राविधानों को लागू किये जाने को असंवैधानिक मानने विषयक ऐतिहासिक फैसले में अंकित टिप्पणी को क्या प्रोन्नति के पदों पर आरक्षण प्राविधान लागू करने हेतु उच्चतम न्यायालय की सैद्धांतिक स्वीकृति माना जा सकता है?
इस पर चर्चा हेतु आप सब सुधी पाठकों के विचार आमंत्रित हैं।

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