पिछली पोस्ट में हमने इस विषय पर चर्चा की थी कि किस प्रकार लोक प्रयोजन एवं कम्पनियों दोनों के लिये भूमि का अधिग्रहण कब्जा हस्तान्तरण एवं प्रतिकरण निर्धारण के सम्बन्ध में 1 मार्च 1984 को ‘भूमि अध्याप्ति अधिनियम 1894’ के द्वारा व्यापक प्रविधान किये गये थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद अनेक अन्य अधिनियम की भाँति इस अधिनियम में भी भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय कानून के रूप में अंगीकार किया गया।
परन्तु इधर भूमि अधिग्रहण के प्रकरणों के विरूद्ध बढती किसानों की आक्रामक भूमिका ने भारत सरकार को एक नया भूमि अध्याप्ति अधिनियम बनाये जाने के लिये विवश किया है जिसमें किसानों के हितो के प्राविधान तो हों ही, साथ ही किसानों को देय प्रतिकर के मामलों में अनियमितता करने वालों के विरूद्ध समुचित दण्डात्मक कार्यवाही की भी संभावना हो।
इस प्रकार का अधिनियम बनने की दिशा में केन्द्र सरकार का एक विधेयक तेजी से अग्रसर है जिसका नाम है ‘भूमि अर्जन , पुर्नवासन और पुर्नव्यवस्थापन विधेयक 2011’ । इस प्रस्तावित विधेयक की धारा रा 29 के प्राविधान किसान यूनियन के नेताओं से प्रभावित हों न हो अपितु देश भर में भ्रष्टाचार के विरूद्ध अलख जगाने वाले जननायक अन्ना के एजेन्डे से प्रभावित अवश्य दिखलाई पडती हैं। आप स्वयं देखियेः-
धारा 29ः-यदि कोई व्यक्ति प्रतिकर के संबंधित या पुर्नवास या पुर्नव्यवस्थापन से संबंधित किन्ही उपबंधों का उलंधन करता है तो प्रत्येक ऐसा व्यक्ति छह माह की अवधि से जो बढाकर तीन वर्ष तक हो सकेगी या जुर्माने से अथवा दोनो से दंडनीय होगा।
इसी प्रकार इस प्रस्तावित अधिनियम की धारा 81 भूमि अधिग्रहण संबंधी प्राविधानों पर सरकारी विभाागों द्वारा अपराध करने की स्थिति में उन्हें भी दंडित करने का प्राविधान अंतरनिहित करती है।
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