क्या आपको मालूम है कि यदि हम हाल ही हुयी उत्तर प्रदेश राज्य की पुलिस में बडी मात्रा में हुये आउट आफ टर्न प्रोन्नतियों को छोड दें तो उत्तर प्रदेश के शेष राज्य कर्मचारियों की प्रोन्नति की राह रोककर एक नाग खडा हो गया है । यह नाग है माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा परित एम नागराजा का एक निर्णय?
आइये आपको इस नाग का विस्तृत परिचय करवाते हैं जिसके कारण वर्ष 2011 उत्तर प्रदेश के राजकीय कर्मचारियों के लिये अब तक प्रोन्नति शून्य वर्ष ही रहा है।
ममला यह है कि इस प्रदेश में राजकीय कर्मचारियों की प्रोन्नति संबंधी नियमावली को उत्तरप्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ के द्वारा दिनांक 4 जनवरी 2011 को असंवैधानिक करार दे दिया गया था।
प्रकरण उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के कुछ कर्मिको की प्रोन्नति संबंधी याचिका का था जिस पर विस्तृत सुनवायी करने के बाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ द्वारा यह निर्देश दिये थे कि प्रोन्नति के मामले में एस सी एसटी कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देने संबंधी प्रदेश सरकार के नियम गैर कानूनी तथा गैर संवैधानिक हैं। इस मामले मे उत्तर प्रदेश सरकार तथा कुछ निजी याचिकाकर्ताओं द्वारा तत्काल माननीय उच्चतम न्यायालय में प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के विरूद्व विशेष अपील योजित कर दी थी गयी जिसमें यथास्थिति का आदेश परित करते हुये उच्चतम न्यायालय में प्रकरण की सुनवायी लगातार जारी है। इस विशेष अपील की ताजा स्थिति यह है कि इसमें आगामी 11 अक्टूबर की तिथि नियत है।
4 जनवरी 2011 को पारित उच्च न्यायालय के आदेश में उत्तर प्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय ने प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के नियम को यह कहते हुये निरस्त कर दिया था कि राज्य सरकार ने एम नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन नहीं किया है। आरक्षण का लाभ देने से पहले कर्मचारियों के पिछडेपन और नौकरियों में उनके प्रतिनिधित्व क आंकडे एकत्र नहीं किये गये हैं। उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार द्वारा प्रोन्नति में आरक्षण देनके 17 अक्टूबर 2007 के कानून यू पी पब्लिक सर्विसेस (एस सी उस टी ओबीसी आरक्षण) कानून 1994 की धारा 3(7) तथा यू पी गवर्नमेन्ट सर्वेन्ट सीनियरिटी (तीसरा संशोधन ) नियम 2007 के नियम 8 ए को भी निरस्त कर दिया था । उच्च न्यायालय ने सरकार को नये सिरे से प्रोन्नति सूची तैयार करने के निर्देश दिया था।
इस मामले में सुनवायी न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर तथा न्यायमूर्ति वी एस सिरपुरकर द्वारा की जा रही है। राज्य सरकार की ओर से अधिवक्तागण के के वेणुगोपाल सतीशचंद्र मिश्र तज्ञज्ञ निजी याचिकाकर्ताओ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी पी राव राजकुमार गुप्ता हैं। राज्य सरकार और इन निजी याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि माननीय उत्तर प्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय द्वारा एम नागराजा मामले में दिये गये उच्चतम न्यायालय के निर्णय को समझने में भूल की है। यह बहुत गंभीर मसला है। इस निर्णय के दूरगामी परिणाम होगे जो संवैधानिक प्राविधनों के भी विपरीत है।
आने वाली 11 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय में जैसा भी हो प्रदेश में प्रोन्नति की बाट जोह रहे वरिष्ट कर्मचारियों के लिये नागराजा का फैसला तो किसी नाग की तरह ही फुफकारते हुये प्रोन्नति का रास्ता रोककर खडा हो गया है। ऐसी हालत में कई बार यह सोचने पर विवश होना पडता है कि क्यों नही आउट आफ टर्न प्रोन्नतियों में भी रोक लगा दी जाती?
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