सोमवार, 19 दिसंबर 2011

डा0 भीमराव अंबेडकर जी के वक्तब्य में इंगित पार्टी के एकदम धराशायी होने के संभावित कारणों की पड़ताल : जैसा ‘उसने कहा था....’

हिन्दी साहित्य में गुलेरी जी की लोकप्रिय कहानी ‘उसने कहा था’ आज हमें एक दूसरे संदर्भ में याद आयी। हुआ यूं कि जब से लखनऊ कलक्ट्रेट में तैनाती पायी है अवकाश दिवस अर्थहीन हो गये हैं। तकरीबन पिछले दो माह से लगातार अवकाश के दिवस में शहर में कोई न कोई महत्वपूर्ण आयोजन होता है जिसके लिये निश्चित किये गये दायित्यों के कारण उसमें भौतिक उपस्थिति के चलते विगत किसी भी अवकाश दिवस मे मैं अपने पारिवारिक दायित्व नहीं निभा पाया हूँ।

अभी कल जो रविवार बीता है उसमें भी राजधानी में शासक दल द्वारा मुस्लिम क्षत्रिय वैश्य भाईचारा रैली का आयोजन किया गया था जिसमें शान्ति व्यवस्था व अन्य व्यवस्थाओं (?)के मध्येनजर समूचे प्रदेश से छोटे बडे लगभग 500 अधिकारी विभिन्न उत्तरदायित्यों के निर्वहन के लिये राजधानी में उपस्थित थे।


प्रदेश की लोकप्रिय मुख्यमंत्री जी (?) द्वारा मुसलमानों को अपने एजेन्डे में जोडने के लिये सार्वजनिक रूप से सच्चर कमेटी की सिफारिशों के प्रति सहमति जताकर उसके अनुसार सहूलियें प्रदान करने का संकल्प दोहराने के अतिरिक्त बाबा साहब डा0 भीमराव अंम्बेडकर जी के बताये मार्ग का अनुसरण करने का आह्वाहन किया गया । मुझे इस अवसर पर दिनांक 23 दिसम्बर 1944 को बाबा साहब डा0 भीमराव अम्बेडकर के सम्मान में सन्डे आब्जर्वर के सम्पादक श्री पीण् बालासुब्रम्ण्या द्वारा एक भोज का आयोजन याद आया क्यांकि इस सम्मान समारोह में अपने विचार रखते हुये बाबा साहब ने जो कुछ कहा था वे समस्त विचार वर्तमान उत्तर प्रदेश के संदर्भ में पूर्णतः प्रासंगिक जान पडते हैं।

इन विचारों को लखनऊ के प्रकाशक बहुजन कल्याण प्रकाशन ने संग्रहीत करा था । (बहुजन कल्याण प्रकाशन ३६०/१९३ मातादीन रोड , सआदतगंज , लखनऊ -३ . चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु द्वारा संकलित और संपादित ‘बाबासाहेब के पंद्रह व्याख्यान ‘ नामक पुस्तक प्रथम संस्करण जुलाई , १९६५ .) डा0 अम्बेडकर के वक्तब्य का प्रमुख अंश इस प्रकार हैः
(वक्तब्य पृष्ट ५४ से ५७ से लिया गया है .)



मित्रों ,

जहाँ तक मैंने अध्ययन किया है , मैं कह सकता हूँ कि-.....................
इस देश के इतिहास में जहाँ ब्राह्मणवाद का बोलबाला है , अब्राह्मण पार्टी का संगठन एक विशेष घटना है और इसका पतन भी उतने ही खेद के साथ याद रखी जाने वाली एक घटना है । १९३७ के चुनाव में पार्टी क्यों एकदम धराशायी हो गयी , यह एक प्रश्न है , जिसे पार्टी के नेताओं को अपने से पूछना चाहिए। चुनाव से पहले लगभग २४ वर्ष तक मद्रास में अब्राह्मण-पार्टी ही शासनारूढ़ रही । इतने लम्बे समय तक गद्दी पर बैठे रहने के बावजूद अपनी किसी गलती के कारण पार्टी चुनाव के समय ताश के पत्तों की तरह उलट गई ? क्या बात थी जो अब्राह्मण-पार्टी अधिकांश अब्राह्मणों में ही अप्रिय हो उठी ? मेरे मत में इस पतन के दो कारण थे ।

पहला कारण यह है कि इस पार्टी के लोग इस बात को साफ नहीं समझ सके कि ब्राह्मण-वर्ग के साथ उनका क्या वैमनस्य है ? यद्यपि उन्होंने ब्राह्मणों की खुल कर आलोचना की,तो भी क्या उनमें से कोई कभी यह कह सका था कि उनका मतभेद सैद्धान्तिक है । उनके भीतर स्वयं कितना ब्राह्मणवाद भरा था । वे ’ नमम’ पहनते थे और अपने आपको दूसरी श्रेणी के ब्राह्मण समझते थे। ब्राह्मणवाद को तिलांजलि देने के स्थान पर वे स्वयं ’ब्राह्मणवाद’ की भावना से चिपटे हुए थे और समझते थे कि इसी आदर्श को उन्हें अपने जीवन में चरितार्थ करना है । ब्राह्मणों से उन्हें इतनी ही शिकायत थी कि वे उन्हें निम्न श्रेणी का ब्राह्मण समझते हैं । ऐसी कोई पार्टी किस तरह जड़ पकड़ सकती थी जिसके अनुयायी यह तक न जानते कि जिस पार्टी का वे समर्थन कर रहे हैं तथा जिस पार्टी का विरोध करने के लिए उनसे कहा जा रहा है ,उन दोनों में क्या-क्या सैद्धान्तिक मतभेद हैं । उसे स्पष्ट कर सकने की असमर्थता , मेरी समझ में , पार्टी के पतन का कारण हुई है ।

पार्टी के पतन का दूसरा कारण इसका अत्यन्त संकुचित राजनैतिक कार्यक्रम था। इस पार्टी को इसके विरोधियों ने ’नौकरी खोजने वालों की पार्टी ’ कहा है ।मद्रास के ’हिन्दू’ पत्र ने बहुधा इसी शब्दावली का प्रयोग किया है। मैं उसक आलोचना का अधिक महत्व नहीं देता क्योंकि यदि हम ’ नौकरी खोजने वाले ’ हैं, तो दूसरे भी हम से कम ’नौकरी खोजने वाले’ नहीं हैं । अब्राह्मण-पार्टी के राजनीतिक कार्यक्रम में यह भी एक कमी अवश्य रही कि उसने अपनी पार्टी के कुछ युवकों के लिए नौकरी खोजना अपना प्रधान उद्देश्य बना लिया था। यह अपनी जगह ठीक अवश्य था। लेकिन जिन अब्राह्मण तरुणों को सरकारी नौकरियां दिलाने के लिए पार्टी बीस वर्ष तक संघर्ष करती रही, क्या उन अब्राह्मण तरुणों ने नौकरियाँ मिल जाने के बाद पार्टी को स्मरण रखा ? जिन २० वर्षों में पार्टी सत्तारूढ़ रही ; इस सारे समय में पार्टी गांवों में रहने वाले उन ९० प्रतिशत अब्राह्मणों को भुलाये रही, जो आर्थिक संकट में पड़े थे और सूदखोर महाजनों के जाल में फँसते चले जा रहे थे।

मैंने इन बीस वर्षों में पास किये गए कानूनों का बारीकी से अध्ययन किया है । भूमि-सुधार सम्बन्धी सिर्फ़ एक कानून को पास करने के अतिरिक्त इस पार्टी ने श्रमिकों और किसानों के हित में कुछ भी नहीं किया । यही कारण था कि ’ कांग्रेस वाले चुपके से ’ चीर हरण,कर ले गये।

ये घटनायें जिस रूप में घटी हैं , उन्हें देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। एक बात जो मैं आपके मन में बिठाना चाहता हूं, वह यह है कि आपकी पार्टी ही आपको बचा सकती है । पार्टी को अच्छा नेता चाहिए , पार्टी को मजबूत संगठन चाहिए , पार्टी को अच्छा प्लैट-फ़ार्म चाहिए ।





वर्ष 2007 से अब तक उत्तर प्रदेश राज्य में समस्त राजकीय कर्मचारियों को प्रोन्नति का अवसर मात्र इस लिये नहीं मिल सका है क्योंकि प्रोन्नति में आरक्षण लागू करने की नीति को सूबे के उच्च न्यायालय ने उचित नहीं माना था ।

यह उल्लेखनीय है कि प्रोन्नति में आरक्षण के लागू होने या न होने से प्रभावित होने वाले पदों की संख्या उपलब्ध पदों की मात्र 21 प्रतिशत ही है । यदि सरकार चाहती तो 21 प्रतिशत पदों को माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अधीन प्रोन्नति के लिये सुरक्षित रखते हुये शेष 79 प्रतिशत पदों पर सामान्य वरिष्ठता सूची से प्रोन्नति किये जाने की कार्यवाही की जा सकती थी परन्तु ऐसा नहीं किया गया ।

क्या यह 1944 में बाबा साहब डा0 भीमराव अंबेडकर जी के वक्तब्य में इंगित राजनैतिक दल के पराजित होने के संभावित कारणों के अनुरूप आचरण नहीं है? यह प्रकरण आपके सम्मुख सादर विचारार्थ प्रस्तुत है।

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