शनिवार, 31 दिसंबर 2011

क्या भारत की सेनाओं में कार्यरत व्यक्ति तथा कारावास मे निरोधित अथवा पागल यानी जड. एक जैसा ही स्टेटस रखते हैं?


पिछले दिनों अखिल भारतीय सेवा संवर्ग के उत्तर प्रदेश निवासी एक वरिष्ट अधिकारी ने प्रदेश की भूमि विधियों से जुडी एक ऐसी समस्या से अवगत कराया जिसे जानकर इसे आपके साथ साझा करने का मोह संवरण न कर सका सो समस्या ज्यों की त्यो आपके सम्मुख है।
उत्तर प्रदेश में यह आम धारणा है कि जमींदारी विनाश अधिनियम के लागू हो जाने के बाद अब कृषि भूमि पर से मध्यवर्तियों के समस्त अधिकार समाप्त हो चुके हैं और भूमि का मालिकाना हक उसे जोतने वाले किसान के हक में सुनिश्चित कर दिया गया है। इस अधिनियम की धारा 156 विधिवत यह प्राविधान करती है कि जमींदारी की प्रथा पुनः न उठ खडी हो इसे रोकने के लिये किसी भी भूमिधर को अपनी जमीन लगान पर अथवा पट्टे पर उठाने (स्थानीय भाषा में बंटाई पर देने का अधिकार) का अधिकार न होगा।
परन्तु अधिनियम की धारा के विस्तार में जाने पर यह पता चला कि इस अधिनियम की धारी 157 के अंतरगत कुछ अक्षम श्रेणी के व्यक्तियों को अपनी भूमि पट्टे पर उठाने के सक्षम है। अब इस प्रकार के अक्षम व्यक्तियों की सूची पर विचार करने के दौरान जो तथ्य निकलकर आये वो विस्मयकारी थे। इस प्रकार के अक्षम व्यक्तियों की सूची निम्नवत हैः-
(क) अविवाहित स्त्री अथवा यदि वह विवाहिता हो तो अपने पति से परित्यक्ता हो (divorced) या अलग हो गयी हो (separeted) या उसका पति खण्ड (ग) या (घ) में उल्लिखित किसी अक्षमता (disability) से ग्रस्त हो, अथवा विधवा हो,
(ख) ऐसा अवस्यक जिसका पिता खण्ड (ग) या (घ) में उल्लिखित किसी अक्षमता से ग्रस्त हो या मर गया हो।
(ग) पागल या जड़ हो
(घ) ऐसा व्यक्ति हो जो अन्धेपन या शारीरिक निर्बलता के कारण खेती करने में अक्षम (incapable) हो,
(ड.) किसी स्वीकृत शिक्षा संस्था (recognised institution) में अध्ययन करता हो और 25 वर्ष से अधिक आयु का न हो और जिसका पिता खण्ड़ (ग) या (घ) में उल्लिखित किसी अक्षमता से ग्रस्त हो या मर गया हो।
(च) भारत की स्थल-सेना, नौ सेना या वायू सेना सम्बन्धी सेवा में हो अथवा
(छ) निरोधन (detention) या कारावास में हो।
इस धारा की सीधी सादी चुहल भरी व्यंग्यात्मक विवेचना तो यह है कि अपनी खेती योग्य जमीन पट्टे पर उठाये जाने के मामले मे पागल अथवा जड., कारावास मे निरोधित, विधवा महिला अथवा भारत की तीनों सेनाओं में सेवारत व्यक्ति एक जैसी ही प्रास्थिति रखते हैं।
खैर यह तो हुयी व्यंग्यात्मक विवेचना परन्तु इसका वास्तविक निहितार्थ यह है कि भारत की किसी भी सेना में कार्यरत व्यक्ति अपनी अखिल भारतीय तैनाती के लिहाज से अपने पैतृक अथवा अर्जित कृषि भूमि की व्यवस्था करने में सक्षम नहीं हो सकता। जमींदारी विनाश कानून बनाने वाले नीति नियंताओं ने इस ओर समुचित ध्यान देते हुये उनकी कृषि भूमि को पट्टे पर उठाने की अधिकारिता अधिनियम के अंतरगत प्रदान की।

अब बात करते हैं अखिल भारतीय सेवा संवर्ग के अधिकारियों की जिनमें आई ए एस आई पी एस और अन्य अनेकों केन्द्रीय सेवायें हैं जिनका कार्यक्षेत्र संपूर्ण भारत वर्ष है और वे समय समय पर भारत वर्ष के कोने कोने में स्थानान्तरित होते रहते हैं तथा अपनी पैत्रिक कृषि भूमि की देख रेख कर सकने में अक्षम होने के कारण किसी न किसी अन्य साधन बटाई अथवा पट्टे पर देकर ही इसकी देखरेख करते है।
इसमें भी सबसे बुरी स्थिति अखिल भारतीय सेवा के आई ए एस अधिकारियों की होती है जो अखिल भारतीय सेवा के होने के वावजूद अपने पूरे सेवाकाल के लिये किसी न किसी राज्य विशेष के कैडर हेतु आवंटित हो जाते है।
अब सोचिये कि क्या उत्तर प्रदेश का कोई मूल निवासी अधिकारी यदि केरल राज्य के कैडर को आवंटित हो जाता है तो क्या अपनी तैनाती के दौरान उत्तर प्रदेश में स्थित अपनी कृषि भूमि की स्वयं देखरेख कर सकता है? उत्तर बिल्कुल साफ है शायद नहीं ! तो फिर प्रदेश में कृषि योग्य भूमि को पट्टे पर उठाये जाने की अक्षमता के अंतरगत उसकी गणना क्यों न की जाय?
विषय को विस्तार देते हुये यह भी कहा जा सकता है कि कोई भी कर्मचारी जो राजकीय सेवारत है अपने गृह जनपद में स्थित कृषि भूमि की ब्यवस्था हेतु किसी न किसी अन्य साधन यथा बटाई अथवा पट्टे पर देकर ही इसकी व्यस्था कर पाता है।
जमींदारी विनाश अधिनियम में यह प्रतिबंधित है तथापि यह किया जाता है। जन सामान्य में स्वीकृत इस प्रथा को क्यों न कानून का रूप दिया जाय जौर और उ0प्र0 जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 157 में अक्षम व्यक्ति के द्वारा अपनी कृषि भूमि को पट्टे पर उठाये जाने हेतु अयोग्य व्यक्तियों की श्रेणी में निम्न प्रकार की एक अन्य श्रेणी भी जोड जी जायः-
(ज) भारत सरकार अथवा उत्तर प्रदेश राज्य के सेवारत कर्मचारी ।


इस विषय पर आप सब सुधी पाठकजनों की राय का स्वागत रहेगा ताकि इस विचार के प्रति आम जन के मनोभावों को भी भांपा जा सके। कृपया अपनी टिप्पणी अवश्य दें

आप को उत्तर प्रदेश राजस्व (प्रशासनिक ) मंच परिवार की ओर से नव वर्ष ''२०१२'' की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ।   
                     


3 टिप्‍पणियां:

  1. अजय कुमार सिंह जी ने कहा

    श्री शुक्ल जी
    इस रोचक सुझाव के लिए धन्यवाद
    क्यों न भारत सरकार / राज्य सरकार के सेवारत कर्मचारियों के साथ -साथ संगठित / असंगठित श्रेत्र के अन्य सभी कर्मचारियों श्रमिको व्यापारियों को तथा देश व दिदेश में आजीविका के लिए कार्यरत भारतीय नागरिकों को भी यह सुविधा प्रदान कर दी जाय।
    परन्तु यदि ऐसा किया जाता हे तो जेड ऐ उल आर एक्ट की इस धारा का मूल उइ्देश्य समाप्त हो जायेगा ।
    टिप्पण्री का अवसर प्रदान करने के लिए धन्यवाद

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  2. बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है। ऐसे बहुत से सरकारी नियम हैं जो न केवल अदूरदर्शी हैं बल्कि कई मामलों में अन्यायी भी हैं। अखिल भारतीय सेवा संवर्ग ही नहीं, अन्य कर्मचारी, व्यापारी, अनिवासी भारतीय नागरिकों जैसे कितने ही वर्ग हैं जिनके हितों का ध्यान नहीं रखा गया है। सैनिक तो सिविल प्रशासन का भाग नहीं हैं और ऐसे किसी भी नियम-निर्देश के निर्माता तंत्र का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि गाँव में उनकी ज़मीनें अक्सर असुरक्षित होती हैं। कौन बनाता है ऐसे सरकारी नियम? इसमें नेताओं और आइएऐस अधिकारियों की क्या भूमिका रहती है? क्या हमारे देश में इन्हें बदलने/सुधार की कोई सरल प्रक्रिया है? इन सभी सवालों के उत्तर पर भी एक आलेख लिखिये, इंतज़ार रहेगा।

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  3. आदरणीय अनुराग शर्मा जी
    आपका आाभार कि आपने इतनी गंभीरता से पढा शीध्र ही आपके सुझाये विषय पर लिखने का प्रयास करूगा उत्साहवर्धन के लिये आभार

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